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Saturday, December 29, 2012

गुजारिश

                                      

कल मेरा भी बलात्कार होगा,
और पटक दिया जाएगा मुझे रोड़ के बीचो-बीच।
तब क्या बैठोगे यूँही चुप तुम?
जब मेरा मुह बल्र कर के टी-वी पे दिखाया जाएगा,
और मेरे माँ बाप से पुलिस करेगी सवाल,
क्या तुम्हारी बेटी का चरित्र तो ख़राब नहीं  था?
क्या कर थी तुम्हारी बेटी दिल्ली मैं रात ग्यारा बजे?
अकेली क्यूँ थी?
ऐसे-वैसे कपड़े क्यूँ पहने थे?
कहीं उसने बलाताकारियों को आकर्षित करने की कोशिश तो नहीं की?
क्या जवाब देंगे वो? 

क्या तुम रो ना पड़ोगे मेरी खातिर?
क्या नहीं उतर रोड़ पे आओगे?
क्या दोगे अपना थोड़ा  कीमती समय?
क्या दोगे मेरे माँ-बाप का साथ? 
या बैठोगे यूँही चुप? एक दम चुप।
अपनी आराम  कुर्सियों मैं धसे हुए।

तुम आना, शोर मचाना, जला देना ये पुलिस थाने!!
तोड़ देना ये मैली खादी की इमारते!! 
तुम आना जरुर। 
क्यूंकि तुम भी अब ज्यादा देर सुरक्षित नहीं!


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