लंदन वॉटरलू के एक होटल में मिड्ल क्लास परिवारों की तीन लड़कियां।
आई हैं अपने अपने काम से। एक सुबह कोन्फेरेंस करती है, एक टॉक देती है, एक कोर्स पढ़ाती है। शाम को मिल खूब गपियाती हैं ये तीन लड़कियां। "अबे गोरों का summer इतना ठंडा क्यूँ है?" रेड वाइन से काम चलाती हैं ये तीन लड़कियां। दाल-भात खोजती, मैगी बनाती हैं, ये तीन लड़कियां। आई हैं अपने-अपने काम से लंदन, ये तीन लड़कियां। पटना के किस्से, दिल्ली की गलियां बतियाती हैं, ये लड़कियां। जोर जोर से ठहाके लगाती हैं ये लड़कियां। साउथबैंक पे स्कर्ट उड़ाती हैं ये लड़कियां। मेक्सिकन खाने में राजमा-चावल देख, खुश हो जाती हैं ये लड़कियां। एक दूसरे को देख मुस्कुराती हैं ये लड़कियां। आई हैं अपने-अपने काम से लंदन ये तीन लड़कियां। "क्या सब गोरे काला, सलेटी, नीला पहने रहते हैं!!" खुद रंगो में नहाती हैं ये लड़कियां। "लगता है आजकल ये बैग चले हुए हैं।" कहती, अपना झोला फिराती हैं ये लड़कियां। खड़े हो वेस्टमिनिस्टर ब्रिज पे अपने बचे पौंड का हिसाब लगाती हैं ये लड़कियां। आई हैं अपने-अपने काम से लंदन ये तीन लड़कियां। सुबह सुबह मीटिंग्स में भागती, विक्टोरिया स्टेशन पे दौड़ लगाती हैं ये लड़कियां। अपनी टॉक खत्म कर, चाय की आस लगाती हैं ये लड़कियां। शाम को फिर कहीं पब में डेरा डाला जायेगा, फिर प्लान बनाती हैं ये लड़कियां। सुबह मेहनत कर, शाम को ख़्वाब सजाती हैं ये लड़कियां। आई हैं अपने-अपने काम से लंदन ये तीन लड़कियां। |
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Thursday, January 28, 2016
तीन लड़कियां
गाली
संघी मेरे लिये गाली नहीं है, रंडी भी गाली नहीं है। नाही आप (टार्ड) या कांग्रेसी होना गाली है। यहाँ तक के भक्त और महाभक्त होना भी गाली नहीं है। गाली है तो ये के मैंने किसी का जानबूझ के दिल दुखाया। गाली है तो ये के मैंने किसी का गलत लाभ उठाया। गाली है तो ये के मैं दिखावे पे पैसा खर्च करती हूँ, और अपनी काम-वाली का कप टूटने पे पैसा काट लेती हूँ। गाली है तो ये के मैं अपने से दुगनी उम्र के ड्राइवर को डांटने का हक़ रखती हूँ।
गाली है तो ये के मैं मॉल, हवाईजहाज़ो में जो-मांगे दाम देती हूँ, और सड़क पे भाजी वाले और रिक्शा वाले से मोल-भाव करती हूँ। गाली है तो ये के मैं अपनी गर्ल फ्रेंड या बॉय फ्रेंड पर गुस्सा आने पर हाथ उठा देती हूँ। गाली है तो ये के मैं अपने दोस्तों से काम निकलवा के, उनके जरुरत के समय कटने लगती हूँ। गाली है तो ये के मैं समय देके लेट आती हूँ। गाली है तो ये के मैं कमिट किया गया काम समय पर नहीं करती। गाली है तो ये के मैं अपनी सेहत का ख्याल नहीं रखती। गाली है तो ये के मैं दुसरो को गाली देती हूँ।
गाली किसी के सामने सर झुकाना नहीं है, गाली किसी का गला काट लेना है!#नेमटैगसेऊपरउठनाहोगा #स्टॉपटैगिंग
मैं कुछ ज्यादा ही खुश हूँ!
एक क्लास से दूसरी क्लास साईकल चलाते
मैं बहुत खुश हूँ।
कभी दो, कभी बीस बच्चों को एक-साथ पढ़ाते
मैं बहुत खुश हूँ।
घर वापस आ दाल-सब्जी, रोटी बनाते
मैं बहुत खुश हूँ।
कभी बुआ, कभी मौसी से फ़ोन पे बतियाते
मैं बहुत खुश हूँ।
माँ-पापा, बहन के साथ फ़ोन पे खिलखिलाते
मैं बहुत खुश हूँ।
वीकेंड पे घर-सफाई, धोबी-घाट लगाते
मैं बहुत खुश हूँ।
कम चीनी की चाय पीते, आगे घूमने के प्लान बनाते
मैं बहुत खुश हूँ।
उसका हाथ पकड़ बैठते, आँखों ही आँखों में मुस्कुराते
मैं बहुत खुश हूँ।
रोज़ दस बारह घंटे काम कर, आगे की छुट्टी बचाते
मैं बहुत खुश हूँ।
अपने गांव को याद कर, घर आने के सपने सजाते
मैं बहुत खुश हूँ।
अपने घर की लड़कीयों को पढ़ते, और लकड़ो को घर का काम बटाते देख
मैं बहुत खुश हूँ।
अपनी काकी को परदे से निकलते, बेबे को करवाचौथ ठुकराते देख
मैं बहुत खुश हूँ।
रोज़ थोड़ा सा खुद को बदलते, थोड़ा आसपास बदलते देख
मैं बहुत खुश हूँ।
खुद पंख फैलाते, थोड़ा दुसरो को पंख लगाते
मैं बहुत खुश हूँ।
- एक बेहद खुश लड़की।
मैं बहुत खुश हूँ।
कभी दो, कभी बीस बच्चों को एक-साथ पढ़ाते
मैं बहुत खुश हूँ।
घर वापस आ दाल-सब्जी, रोटी बनाते
मैं बहुत खुश हूँ।
कभी बुआ, कभी मौसी से फ़ोन पे बतियाते
मैं बहुत खुश हूँ।
माँ-पापा, बहन के साथ फ़ोन पे खिलखिलाते
मैं बहुत खुश हूँ।
वीकेंड पे घर-सफाई, धोबी-घाट लगाते
मैं बहुत खुश हूँ।
कम चीनी की चाय पीते, आगे घूमने के प्लान बनाते
मैं बहुत खुश हूँ।
उसका हाथ पकड़ बैठते, आँखों ही आँखों में मुस्कुराते
मैं बहुत खुश हूँ।
रोज़ दस बारह घंटे काम कर, आगे की छुट्टी बचाते
मैं बहुत खुश हूँ।
अपने गांव को याद कर, घर आने के सपने सजाते
मैं बहुत खुश हूँ।
अपने घर की लड़कीयों को पढ़ते, और लकड़ो को घर का काम बटाते देख
मैं बहुत खुश हूँ।
अपनी काकी को परदे से निकलते, बेबे को करवाचौथ ठुकराते देख
मैं बहुत खुश हूँ।
रोज़ थोड़ा सा खुद को बदलते, थोड़ा आसपास बदलते देख
मैं बहुत खुश हूँ।
खुद पंख फैलाते, थोड़ा दुसरो को पंख लगाते
मैं बहुत खुश हूँ।
- एक बेहद खुश लड़की।
नये त्यौहार
एक समय की बात है एक प्रेमी युगल पार्क में सैर कर रहा था। तभी कहीं से कुछ "भारतीय संस्कृति"
के ठेकेदार सामने आ जाते हैं। प्रेमी युगल सकपका जाता है और घबराहट में लड़का बेहोश हो जाता है। ठेकेदार लड़की को बेहूदे सवालों से घेर लेते हैं। लड़की डट के जवाब देती है और उन्हें अपने काम-से-काम रखने को कहती है। अपने बेहुदे सवालों के सीधे-सपाट जवाब सुनने पर ठेकेदार तिलमिला जाते हैं और लड़की के ऊपर "भारतीय संस्कृति" क्रप्ट करने का इलज़ाम लगाते हैं। लड़की के तरफ से कोई घबराहट ना देख ठेकेदार अपनी छोटी सोच का परिणाम देते हुए लड़की के घर में चुगली करने की धमकी देते हैं। लड़की अपने पिता को स्वयं फ़ोन लगाती है और पुरे मामले की जानकारी देती है। अब ठेकेदार गुस्से में तिलमिलाते हुए जाते जाते लड़की के सर पे डंडे से वार करते हुए भाग जाते हैं। थोड़ी देर बाद जब लड़के को होश आता है तो वो अपनी प्रेमिका को खून में लथपथ पाता है। अपनी बहादुर प्रेमिका की ये हालात देख लड़का प्रण लेता है के वो उसे मरने नहीं देगा। आस-पास लोग इक्कठे हो जाते हैं, भीड़ में से कोई निकल के लड़की की नब्ज चेक करता है, तो लड़की को मरा बताता है। लड़का अपने प्रण पे अडिग रहता है, और लड़की का सर अपनी गोद में रख बैठा रहता है। शाम से सुबह हो जाती है, लेकिन लड़का है के उठने का नाम नहीं लेता। वो बिना खाए-पिए तीन दिन तक लड़की की लाश अपनी गोद में लिए बैठा रहता है। ऐसी लगन और महोब्बत देख कर "भारतीय संस्कृति" के ठेकेदारो के दिमाग का गोबर भी जलने लगता है। लड़के की लड़की की तरफ ऐसी प्यार और श्रद्धा देखा कलियुग के देवता स्वयं प्रकट होते हैं और लड़की को वापस जीवन दान देते है। तब से आज-तक लड़की की लाजवाब बहादुरी और लड़के की बेइन्तिहां महोब्बत को दुनिया याद करती है, और उसे सेलिब्रेट करने के लिए लड़कियाँ साल में तीन दिन अपनी बहादुरी का परिचय देती हैं और लड़के अपनी मोहोब्बत का। ऐसे बहादुर प्रेमिका पाने के लिए लड़के बिना खाए-पिए तीन दिन अपने सपनो की बहादुर लड़की का ध्यान करते हैं। जो लड़के सात साल लगातार ये व्रत करते हैं उन्हें उनके सपनो की बहादुर लड़की मिलती है। लड़कियाँ इन तीन दिनों में अपनी बहादुरी का परिचय देते हुए अपने घर-वालों और समाज को अपने-अपने प्रेमियों से परिचय करवाती हैं और "भारतीय संस्कृति" के ठेकेदारों का मनोबल डाउन करती हैं। इस दिन को "बहादुर-महोब्बत" के नाम से पुरे भारत वर्ष में धूम-धाम से नवंबर के खुशनुमा-रूमानी महीने में मनाया जाता है। |
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