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Monday, April 13, 2009

कुछ अच्छा नही लगता


तुझ से दूर कुछ अच्छा नही लगता,
इस तन्हाई मैं अपना साया भी सच्चा नही लगता।
हर पल तू ख्यालों मैं है मौजूद,
इस खामोशी मैं प्रेम गीत भी अच्छा नही लगता।
तेरी यादों मैं डूबी हूँ इस कदर,
कोई दूसरा जगाये तो अच्छा नही लगता।
हर आहट मैं तुमको ही सोचा करती हूँ,
कोई शोर मचाये तो अच्छा नही लगता।
आसूं कुछ दोस्त से बन गए है अब,
कोई चुप कराये तो अच्छा नही लगता।
तू जो दूर इतना चला गया है,
कोई दूरी बताए तो अच्छा नही लगता।
इस चौराहे पर आज आ खड़ी हूँ मैं,
कोई रास्ता दिखाए तो अच्छा नही लगता।
तेरे इश्क ने बावरी तो कर दिया मुझे,
पर कोई पागल बताये तो अच्छा नही लगता।
कलम जो आज चली है, तुम्हारा ही अहसान है,
पर ये हुनर भी आज कुछ अच्छा नही लगता।
तेरे बदले ये कलम त्याग दू मैं,
क्योंकी इस कागज पर इतना दर्द अच्छा नही लगता।
तुझ से दूर कुछ अच्छा नही लगता.....