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Sunday, September 7, 2008

और कुछ भी नही...

इक लम्हा बेफिकर सा,
इक हँसी बेपरवाह,
इक आंसू जो ढलका बेवजह,
और कुछ भी नही।

इक अधूरी सी बात,
इक नरम चांदनी रात,
इक खामोशी बिन घबराहट,
और कुछ भी नही।

इक कम चीनी की चाय,
इक कभी ना ख़तम होने वाली कीताब,
इक संतुष्टी का एहसास,
और कुछ भी नही।

इक पल भर तुम्हारे साथ,
इक भटकी हुई तलाश,
इक बहाना जो फिर हो मुलाक़ात,
और कुछ भी नही।

इक गालीब का गीत,
इक जाम और थोड़ा संगीत,
इक महफिल बिन आवाज,
और कुछ भी नही।

इक मेरी नई कवीता,
इक उसकी तारीफ़ का अंदाज,
इक नए हरफ की फिर तलाश,
और कुछ भी नही।

इक जीता हुआ मुकदमा,
इक इन्साफ की आवाज,
इक साहस फिर लड़ने को तैयार,
और कुछ भी नही।

इक दिन अपने आप के साथ,
इक कोरा पन्ना और,
इक कलम जो चले अपने आप!
और कुछ भी नही।

इक कंप्यूटर जो हिन्दी लिखे ठीक ठाक!
चाहिए इस जींदगी से और कुछ भी नही।

Wednesday, September 3, 2008




जीने दे के कुछ शब्द बाकी हैं अभी,
पीने दे के अभी तो कुछ कहा नही

Monday, September 1, 2008



Fading behind the uncertain certainties,
Those sordid images haunted my creativity,
I must find some expression, I must borrow some shape,
Or I buy some words and wear a face,
Embrace the dark and whisper the unsaid,
You are a brilliant role-player and I guessed we relate!
What I could hardly understand, I wondered of late,
I express like an utter fool and wise men rate!