इक लम्हा बेफिकर सा,
इक हँसी बेपरवाह,
इक आंसू जो ढलका बेवजह,
और कुछ भी नही।
इक अधूरी सी बात,
इक नरम चांदनी रात,
इक खामोशी बिन घबराहट,
और कुछ भी नही।
इक कम चीनी की चाय,
इक कभी ना ख़तम होने वाली कीताब,
इक संतुष्टी का एहसास,
और कुछ भी नही।
इक पल भर तुम्हारे साथ,
इक भटकी हुई तलाश,
इक बहाना जो फिर हो मुलाक़ात,
और कुछ भी नही।
इक गालीब का गीत,
इक जाम और थोड़ा संगीत,
इक महफिल बिन आवाज,
और कुछ भी नही।
इक मेरी नई कवीता,
इक उसकी तारीफ़ का अंदाज,
इक नए हरफ की फिर तलाश,
और कुछ भी नही।
इक जीता हुआ मुकदमा,
इक इन्साफ की आवाज,
इक साहस फिर लड़ने को तैयार,
और कुछ भी नही।
इक दिन अपने आप के साथ,
इक कोरा पन्ना और,
इक कलम जो चले अपने आप!
और कुछ भी नही।
इक कंप्यूटर जो हिन्दी लिखे ठीक ठाक!
चाहिए इस जींदगी से और कुछ भी नही।
5 comments:
It's so frickin cool,
you've stopped being a fool.
Aur kuch bhi nahin.
hey..i like thedark touch of life you have in your poetry...looking get back and find some other shades, keep writin ....:-)
hey...i like the dark touch of life you have in your poetry, i look forward to get back and find some other shades too...keep writin and :-)
ye na thi hamari kismat jo visaal-e-yaar hota..
love
Kaash meri kalam mein,
Teri kalam sa kuch jaadu hota,
To teri taarif mein,
Do lafaz hum bhi likthe ....
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