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Friday, March 6, 2015

चरित्रहीन



ऐसे ही रात-दिन, बेटेम, बेमतलब घूमूंगी
ऐसे ही गंदे गंदे कपड़े पहन के, अधनंगे
हँसूंगी, जोर जोर से, बेशर्मी से खिलखलाऊँगी
और जाउंगी साथ और अकेले, जो करेगा मन
जैसा करेगा मन।


समंध बनाऊँगी, जायज़, नाजायज़
जिससे चाहूंगी।
तेरी रिच संस्कृति का ढोल बजाउँगी।
लज़्ज़ा की फिरकी बना के घुमाऊँगी
फ़िरूँगी चरित्रहीन।

समाज को तूने नाम दिया, तेरा होगा। थू।
शहर को तूने बनाया, तेरा होगा। थू।
देश भी तू रख। थू।
कानून भी रख। थू।
रख तू अपने पास!! रख।

ये धरती समूची मेरी है।
ये आसमान समूचा मेरा है।
मैं चलूंगी। मैं उड़ूँगी। मैं फ़िरूँगी।
चरखी बन के। मदमस्त।
देख तो। देख। पास तो आ।
आ। आ। आ।

जहरीला फूल हूँ, सूंघ भी नहीं पाओगे,
एटम बम हूँ, हाथ भी ना लगा पाओगे
हो जाएंगी छित्तर-बित्तर तेरी आँतड़ियां
तेरी आँख, तेरी जीभ, तेरी उँगलियाँ
धरती की धुल में।