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Wednesday, January 9, 2013

जंग

मुझे भी जंग पसंद होती,
गर इससे समस्याएं हल होती,
ना मासूम होते कुर्बान,
ना होते गाँव वीरान,
ना बाप लिए होता अपने बच्चे की लाश,
ना माँ टटोल रही होती लाशें
करती अपने की तलाश।

मुझे भी जंग पसंद होती,
गर इससे समस्याएं हल होती,
ना जलते शहर, ना उजड़ते घर,
ना दिन मैं अँधेरा छाता,
ना सुबह गुम हो जाती,
ना शहीद होते जवान,
ना मानते मातम गाँव।

मुझे भी जंग पसंद होती,
गर इससे समस्याएं हल होती।

जले तेरे-मेरे चुहले मैं आग,
तेरे देश मैं भी खुशाली हो,
बजने दे शहनाई मेरे गाँव मैं,
तेरे खेत मैं भी हरयाली हो।
फूक दे ये मंदिर माश्जिद,
लाखो को इसने फूका है,
आ गले लगे के
हम इंसान के बच्चे हैं।
मेरा मुझ से विश्वास उठने लगा है,
बचा ले मुझे,
हम दोनों का भला है।

मुझे भी जंग पसंद होती,
गर इससे समस्याएं हल होती।

जंग तो खुद एक समस्या है,
क्या ये समस्याओ को हल देगी?

Monday, January 7, 2013

पागल

ना ना ना मैं नहीं मानती,
हो ही नहीं सकता,
मुझे तुम्हारी बातो पे विश्वास नहीं,
मेरा भाई जिसकी कलाई पे बाँधी राखी,
हर साल। वो किसी और की बहन का मांस
नोच खायेगा?

तुम झूठ बोलते हो,
ये जरुर तुम्हारी कोई चाल है।

ना ना ना मैं मान ही नहीं सकती
हो ही नहीं सकता,
मेरा बेटा जिसको मैंने जन्म दिया
दूध पिलाया, वो किसी और
की बेटी के खून मैं
नहायेगा?

तुम झूठ बोलते हो,
ये जरुर तुम्हारी कोई चाल है।

पागल हो गए हो गए हो क्या?
इंसान हैं, 
कोई हैवान थोड़े ही हैं।

बंद कर दो ये झूठी ख़बरे,
जाओ अपने अपने घर . …..
जाओ जाओ, सब जाओ।
सुनते ही नहीं,
पागल हैं सब के सब।  

Sunday, January 6, 2013

शर्म

मेरी बहन जब लौटती है स्कूल से,
कुछ लोग उसे मिलते हैं,
एक गाता है, "आजा मेरी गाड़ी मैं बैठ जा"
दूसरा "फुद्दी तेरी आज मैं लेके जाऊ,  ना लित्ती तो जट ना कवाहूँ"
तुझे आज ये सुनने मैं शर्म आ रही है?
वो रोज़ ये सुनती है,
और चुपचाप गुजर जाती है,
आँखे नीची कर,
घर आके रोने के लिए।

एक मुठ मारता है,
उसको देख के हिलाता है,
कभी आँख मारता है,
कभी चोंटी काट के चला जाता है,
तुझे आज ये सुनने मैं शर्म आ रही है?
वो रोज़ ये देखती है,
न बोलती है,
न चिल्लाती है,
घर आके रोने के लिए।

जब एक दिन उसने किया विरोध,
अपनी चौदह साल की आवाज़ मैं,
तो पकड़ लिया हैवानो ने,
बोले आज सबक सिखायेंगे,
नोच लिया मेरी बच्ची को,
खा गये उसका नाज़ुक मॉस,
पि गए उसका कुवारा खून।
और फेंक दिया सड़क के बीचो-बीच।

इस बार वो घर ना आ पाई,
ना रो पाई रख मेरी,
गोदी मैं सर।

अब बता मुझे, क्या बैठू चुप मैं,
और मान लू गलती अपनी बहन ही,
क्यूँ गयी थी स्कूल?
या क्यूँ हुई थी पैदा?
अब ये सब तो होता ही रहता है।
या बंदूख उठाऊ और मार दू,
कर दू एक एक को छलनी?
मुझे बता मैं क्या करूँ?
क्यूंकि ये सरकार मुझे,
फांसी देने मैं देर न लगाएगी।
Such is Justice in our Country.

माफ़ी चाहूंगी कविता प्रेमियों से, के इस कदर गिर गयी मेरी कविता। पर कहाँ से लाऊं वो सुन्दर शब्द, कहाँ ये लाऊं वो हंसी वादियाँ ….. मुझे आई शर्म लिखने मैं, तू पढ़ के शर्मा …. पर क्या आएगी आएगी शर्म उनको, जिनको शर्मसार करने के लिए ये पैदा हुई?

तीन यार

होड़ लगी है नेताओ की,
गर तू मुर्ख तो मैं धूर्त,
गर तू डायन तो मैं पिशाच,
पीता है तू खून जनता का,
मैं खाता हूँ हाड़ मांस।

चल लूट ले इनको बर्बाद करे,
मिल बैठेंगे फिर तीन यार!
वो बोल दे "dented-painted",
मैं बोल दूंगा "ऊँची स्कर्ट",
तू कह देना "लक्ष्मण रेखा",
मैं कह दूंगा "western-culture",
वो बोल देगी बड़ी हैं "adventerous",
वोट तो हम मैं से किसी को देंगे (हुहहहाहा)
फिर मिल बैठेंगे तीन यार!
खादी, खाखी, धर्म।