एक क्लास से दूसरी क्लास साईकल चलाते
मैं बहुत खुश हूँ।
कभी दो, कभी बीस बच्चों को एक-साथ पढ़ाते
मैं बहुत खुश हूँ।
घर वापस आ दाल-सब्जी, रोटी बनाते
मैं बहुत खुश हूँ।
कभी बुआ, कभी मौसी से फ़ोन पे बतियाते
मैं बहुत खुश हूँ।
माँ-पापा, बहन के साथ फ़ोन पे खिलखिलाते
मैं बहुत खुश हूँ।
वीकेंड पे घर-सफाई, धोबी-घाट लगाते
मैं बहुत खुश हूँ।
कम चीनी की चाय पीते, आगे घूमने के प्लान बनाते
मैं बहुत खुश हूँ।
उसका हाथ पकड़ बैठते, आँखों ही आँखों में मुस्कुराते
मैं बहुत खुश हूँ।
रोज़ दस बारह घंटे काम कर, आगे की छुट्टी बचाते
मैं बहुत खुश हूँ।
अपने गांव को याद कर, घर आने के सपने सजाते
मैं बहुत खुश हूँ।
अपने घर की लड़कीयों को पढ़ते, और लकड़ो को घर का काम बटाते देख
मैं बहुत खुश हूँ।
अपनी काकी को परदे से निकलते, बेबे को करवाचौथ ठुकराते देख
मैं बहुत खुश हूँ।
रोज़ थोड़ा सा खुद को बदलते, थोड़ा आसपास बदलते देख
मैं बहुत खुश हूँ।
खुद पंख फैलाते, थोड़ा दुसरो को पंख लगाते
मैं बहुत खुश हूँ।
- एक बेहद खुश लड़की।
मैं बहुत खुश हूँ।
कभी दो, कभी बीस बच्चों को एक-साथ पढ़ाते
मैं बहुत खुश हूँ।
घर वापस आ दाल-सब्जी, रोटी बनाते
मैं बहुत खुश हूँ।
कभी बुआ, कभी मौसी से फ़ोन पे बतियाते
मैं बहुत खुश हूँ।
माँ-पापा, बहन के साथ फ़ोन पे खिलखिलाते
मैं बहुत खुश हूँ।
वीकेंड पे घर-सफाई, धोबी-घाट लगाते
मैं बहुत खुश हूँ।
कम चीनी की चाय पीते, आगे घूमने के प्लान बनाते
मैं बहुत खुश हूँ।
उसका हाथ पकड़ बैठते, आँखों ही आँखों में मुस्कुराते
मैं बहुत खुश हूँ।
रोज़ दस बारह घंटे काम कर, आगे की छुट्टी बचाते
मैं बहुत खुश हूँ।
अपने गांव को याद कर, घर आने के सपने सजाते
मैं बहुत खुश हूँ।
अपने घर की लड़कीयों को पढ़ते, और लकड़ो को घर का काम बटाते देख
मैं बहुत खुश हूँ।
अपनी काकी को परदे से निकलते, बेबे को करवाचौथ ठुकराते देख
मैं बहुत खुश हूँ।
रोज़ थोड़ा सा खुद को बदलते, थोड़ा आसपास बदलते देख
मैं बहुत खुश हूँ।
खुद पंख फैलाते, थोड़ा दुसरो को पंख लगाते
मैं बहुत खुश हूँ।
- एक बेहद खुश लड़की।
No comments:
Post a Comment