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Thursday, January 28, 2016

नये त्यौहार

एक समय की बात है एक प्रेमी युगल पार्क में सैर कर रहा था। तभी कहीं से कुछ "भारतीय संस्कृति"
के ठेकेदार सामने आ जाते हैं। प्रेमी युगल सकपका जाता है और घबराहट में लड़का बेहोश हो
जाता है। ठेकेदार लड़की को बेहूदे सवालों से घेर लेते हैं। लड़की डट के जवाब देती है और उन्हें
अपने काम-से-काम रखने को कहती है।

अपने बेहुदे सवालों के सीधे-सपाट जवाब सुनने पर ठेकेदार तिलमिला जाते हैं और लड़की के
ऊपर "भारतीय संस्कृति" क्रप्ट करने का इलज़ाम लगाते हैं। लड़की के तरफ से कोई घबराहट ना 
देख ठेकेदार अपनी छोटी सोच का परिणाम देते हुए लड़की के घर में चुगली करने की धमकी देते हैं। 
लड़की अपने पिता को स्वयं फ़ोन लगाती है और पुरे मामले की जानकारी देती है। अब ठेकेदार गुस्से
में तिलमिलाते हुए जाते जाते लड़की के सर पे डंडे से वार करते हुए भाग जाते हैं।

थोड़ी देर बाद जब लड़के को होश आता है तो वो अपनी प्रेमिका को खून में लथपथ पाता है।

 अपनी बहादुर प्रेमिका की ये हालात देख लड़का प्रण लेता है के वो उसे मरने नहीं देगा। आस-पास
 लोग इक्कठे हो जाते हैं, भीड़ में से कोई निकल के लड़की की नब्ज चेक करता है, तो लड़की
 को मरा बताता है। लड़का अपने प्रण पे अडिग रहता है, और लड़की का सर अपनी गोद में रख
 बैठा रहता है।

शाम से सुबह हो जाती है, लेकिन लड़का है के उठने का नाम नहीं लेता। वो बिना खाए-पिए तीन

दिन तक लड़की की लाश अपनी गोद में लिए बैठा रहता है। ऐसी लगन और महोब्बत देख कर
"भारतीय संस्कृति" के ठेकेदारो के दिमाग का गोबर भी जलने लगता है। लड़के की लड़की की
तरफ ऐसी प्यार और श्रद्धा देखा कलियुग के देवता स्वयं प्रकट होते हैं और लड़की को वापस जीवन दान देते है।

तब से आज-तक लड़की की लाजवाब बहादुरी और लड़के की बेइन्तिहां महोब्बत को दुनिया

 याद करती है, और उसे सेलिब्रेट करने के लिए लड़कियाँ साल में तीन दिन अपनी बहादुरी
 का परिचय देती हैं और लड़के अपनी मोहोब्बत का। ऐसे बहादुर प्रेमिका पाने के लिए लड़के
 बिना खाए-पिए तीन दिन अपने सपनो की बहादुर लड़की का ध्यान करते हैं। जो लड़के सात
 साल लगातार ये व्रत करते हैं उन्हें उनके सपनो की बहादुर लड़की मिलती है।

लड़कियाँ इन तीन दिनों में अपनी बहादुरी का परिचय देते हुए अपने घर-वालों और समाज को

 अपने-अपने प्रेमियों से परिचय करवाती हैं और "भारतीय संस्कृति" के ठेकेदारों का मनोबल
डाउन करती हैं।

इस दिन को "बहादुर-महोब्बत" के नाम से पुरे भारत वर्ष में धूम-धाम से नवंबर के 

खुशनुमा-रूमानी महीने में मनाया जाता है।

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