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Thursday, January 28, 2016

तीन लड़कियां

लंदन वॉटरलू के एक होटल में मिड्ल क्लास परिवारों की तीन लड़कियां।
आई हैं अपने अपने काम से।
एक सुबह कोन्फेरेंस करती है, एक टॉक देती है, एक कोर्स पढ़ाती है।
शाम को मिल खूब गपियाती हैं ये तीन लड़कियां।

"अबे गोरों का summer इतना ठंडा क्यूँ है?"
रेड वाइन से काम चलाती हैं ये तीन लड़कियां।
दाल-भात खोजती, मैगी बनाती हैं, ये तीन लड़कियां।
आई हैं अपने-अपने काम से लंदन, ये तीन लड़कियां।

पटना के किस्से, दिल्ली की गलियां बतियाती हैं, ये लड़कियां।
जोर जोर से ठहाके लगाती हैं ये लड़कियां।
साउथबैंक पे स्कर्ट उड़ाती हैं ये लड़कियां।
मेक्सिकन खाने में राजमा-चावल देख,
खुश हो जाती हैं ये लड़कियां।
एक दूसरे को देख मुस्कुराती हैं ये लड़कियां।
आई हैं अपने-अपने काम से लंदन ये तीन लड़कियां।

"क्या सब गोरे काला, सलेटी, नीला पहने रहते हैं!!"
खुद रंगो में नहाती हैं ये लड़कियां।
"लगता है आजकल ये बैग चले हुए हैं।"
कहती, अपना झोला फिराती हैं ये लड़कियां।
खड़े हो वेस्टमिनिस्टर ब्रिज पे अपने बचे पौंड का
हिसाब लगाती हैं ये लड़कियां।
आई हैं अपने-अपने काम से लंदन ये तीन लड़कियां।

सुबह सुबह मीटिंग्स में भागती,
विक्टोरिया स्टेशन पे दौड़ लगाती हैं ये लड़कियां।
अपनी टॉक खत्म कर, चाय की आस लगाती हैं ये लड़कियां।
शाम को फिर कहीं पब में डेरा डाला जायेगा,
फिर प्लान बनाती हैं ये लड़कियां।
सुबह मेहनत कर, शाम को ख़्वाब सजाती हैं ये लड़कियां।
आई हैं अपने-अपने काम से लंदन ये तीन लड़कियां।

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