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Wednesday, December 26, 2012

शुरुआत

                          


हाँ, मैं वीक-एन्ड प्रोटेस्टर हूँ,
पर मैं जागा हूँ, सोया था सदियों आज जगा हूँ,
हाँ मैं बस एक काला बिंदु हूँ,
पर मैं एक शुरुआत हूँ।

हाँ, मैं पांच दिन ऑफिस जाऊँगा,
और दो दिन इंडिया गेट पे बैठूँगा,
हाँ मैं कूल हूँ, हाँ मैं प्रोटेस्टर हूँ,
मैं शुरुआत हूँ नए कल की।

हाँ, मैं फेसबुक प्रोटेस्टर हूँ,
कुछ दिनों से मैं एक नया आदमी हूँ, 
मैं सोचता हूँ महिलाओं के बारे मैं,
उनकी आज़ादी और सुरक्षा के सवाल पर मैं विचार करता हूँ,
मैं शुरुआत हूँ नए भारत की।

एक नयी सोच का जन्म हुआ है,
हाँ मेरा दिमाग भन्ना गया है,
हाँ मैं स्पीच्लेस हूँ, मैं चुप हूँ,
पर सोया नहीं हूँ, सतर्क हूँ, जगा हूँ,
मैं शुरुआत हूँ एक नए समाज की।

हाँ मैं मुझे डर लगता है,
मुझे पुलिस से डर लगता है, डंडो से भी डर लगता है,
मैं सरकारी मुलाजिम हूँ, डरा तो हूँ   
पर मैं बेहोंश नहीं हूँ, मैं जगा हूँ,
मैं शुरुआत हूँ एक बराबर समाज की।

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