अगर भ्रूण हत्या सिर्फ़ इसलिए ग़लत है, के पुरषो को पत्नी नही मिलेगी तो ये सोच ग़लत है.
अगर लड़किया सिर्फ़ समाज को बॅलेन्स बनाने के लिए चाहिए तो ग़लत है.
कोन आदमी या औरत अपनी लड़की की हत्या सिर्फ़ इसलिए करता के वो एक लड़की है?
ये समाज़ है ग़लत, तुम और मैं हैं ग़लत, ये परिवार का ढाँचा है ग़लत, ये कामन सोच है ग़लत.
सिर्फ़ ये दिखाने से के लड़कियो की हत्या किस मार्मिक ढंग से होती है,
या ये "समाज" के लिए कितना हानिकारक है,
लोगो को रुलाना या डराना इस समस्या का हल नही.
इस जलील काम को अंजाम देने पे जो मजबूर करता है
उस ढाँचे को बदलना की ज़रूरत है, बदलना है
उस ग़रीबी को जिसमे दो वक्त की रोटी नसीब नही,
उस गाव को जिसमे बिजली, पानी उपलब्ध नही,
उस स्कूल को जिसमे किताबें उपलब्ध नही,
उस सोच को जो आज भी लड़के को घर का चिराग मानती है,
उस बुड्ढे को जिसे जब तक बेटा आग ना दे मोक्ष नसीब नही,
उस आदमी की जो छप्पन कोठे चढ़ा और पत्नी "वर्जिन" चाहिए,
उस परिवार की जो लड़के की शादी मैं घर भर जाने सपने लेता है,
उस लड़के की जो क्लर्क लगते ही होंडा सिटी के सपने लेता है,
उन छिछोरी गलियों की जिसमे क्या मज़ाल लड़की अकेली गुजर जाए,
उन पोलीस अफसरों की जो आठ बजे के बाद रेप को "लीगल" मानते है,
उन लोगो को जो सत्यमेव जयते देख कर अपने आप को समाज सुधारक मानते है
अगर लड़किया सिर्फ़ समाज को बॅलेन्स बनाने के लिए चाहिए तो ग़लत है.
कोन आदमी या औरत अपनी लड़की की हत्या सिर्फ़ इसलिए करता के वो एक लड़की है?
ये समाज़ है ग़लत, तुम और मैं हैं ग़लत, ये परिवार का ढाँचा है ग़लत, ये कामन सोच है ग़लत.
सिर्फ़ ये दिखाने से के लड़कियो की हत्या किस मार्मिक ढंग से होती है,
या ये "समाज" के लिए कितना हानिकारक है,
लोगो को रुलाना या डराना इस समस्या का हल नही.
इस जलील काम को अंजाम देने पे जो मजबूर करता है
उस ढाँचे को बदलना की ज़रूरत है, बदलना है
उस ग़रीबी को जिसमे दो वक्त की रोटी नसीब नही,
उस गाव को जिसमे बिजली, पानी उपलब्ध नही,
उस स्कूल को जिसमे किताबें उपलब्ध नही,
उस सोच को जो आज भी लड़के को घर का चिराग मानती है,
उस बुड्ढे को जिसे जब तक बेटा आग ना दे मोक्ष नसीब नही,
उस आदमी की जो छप्पन कोठे चढ़ा और पत्नी "वर्जिन" चाहिए,
उस परिवार की जो लड़के की शादी मैं घर भर जाने सपने लेता है,
उस लड़के की जो क्लर्क लगते ही होंडा सिटी के सपने लेता है,
उन छिछोरी गलियों की जिसमे क्या मज़ाल लड़की अकेली गुजर जाए,
उन पोलीस अफसरों की जो आठ बजे के बाद रेप को "लीगल" मानते है,
उन लोगो को जो सत्यमेव जयते देख कर अपने आप को समाज सुधारक मानते है
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