शुरुआत तो सीता ने की थी, मूक बन जाने की,
न छिनने की अपना हक, चुपचाप धरती मैं सामने की।
रही सही कसर पूरी की राधा ने, एक रसीले को भगवान बनाने की,
अरे अब तो ये षड़यंत्र समझ जाओ,
छोड़ पाँव विष्णु के लक्ष्मी, कभी तो तुम भी आराम फरमाओ।
बड़ी चालाकी से गुलाम बनाया गया है स्त्री तुझे,
दे धरम का नाम, गुलामी पाठ पढाया गया तुझे।
बहुत बनी शहनशील, क्षमावान, बलिदानी,
क्या मिला? लुटी आबरू अपने ही बगीचे मैं।
बेच दिया भाई ने, बाप मुछो पे ताव देता खड़ा है,
कोन खरीदेगा तेरी बोली है, बाज़ार मैं झगड़ा है।
माना के गुस्सा बहुत है, खून का रंग अभी तक है लाल,
तो तोड़ ये जेवरों के बेड़िया, गुलामी के सब यंत्र जलाओ।
अरे आवाज़ उठाओ, चिल्लाओ, कुछ तोड़ फोड़ मचाओ,
बहुत कर लिया करवा-चौथ, अब तांडव नाच दिखाओ।
फ़ेंक दो ये सीता, राधा, मीरा अपने मंदिरों से,
अब काली को अपनाओ, अब दुर्गा को ले आओ।
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