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Wednesday, December 19, 2012

मज़ाक तो हम हैं

ऐसी क्या बात करते हो, गंदे मज़ाक करते हो?
यूँ महान नेता की मौत पे कटाक्ष कसते हो.
अब कोन बचाएगा हमे बहारियो(आउटसाइडर्स०) से,
नौकरियाँ हुमरी वो सब ले जाएँगे,
भूखे मरेंगे हमारे बच्चे ओर वो जलेबी खाएँगे!
कोन जलाएगा सनीमा घरो को, जब वो अपतिजनक फ़िल्मे दिखाएँगे?
अब तो शायद पाकिस्तानी भी भारत खेलने आएँगे!!
"हिट्लर वाज़ ए गुड मॅन", कोन हमे सिखाएगा?
अब तो इडली सांभर का रेट रातो रात बढ़ जाएगा!
"मुंबई बिलॉंग्स तो एवेरिवन", कहके अब तो तेंदुलकर भी बच जाएगा!
जया आंटी खूब हिन्दी मे बतलाएँगी, टॅक्सी ड्राइवेरो के साथ मीटिंग बिठाएँगी,

ऐसी क्या बात करते हो, गंदे मज़ाक करते हो?
मॅनर्स नही हैं तुम्हे, मौत के बाद हर आदमी महान होता है, (पोंटी चड्डा वाज़ आन एक्सेप्षन)
जो करे भीड़ इखॅटी, उसी का सम्मान होता है!
क्या हुआ जो वो लोकशाही नही शिवशाही के पक्ष मैं थे, (अटलीस्ट हे वाज़ ऑनेस्ट अबाउट इट)
डेमॉक्रेसी तो अपने आलोचको को ही तिरंगा ऊढाती है.
दे इक्कीस बंदुखो की सलामी, टाइगर उसे बनती है.

बंद करवादे जो शहर मर कर भी, वो आदमी महान होता है,
इस देश मैं मेरे दोस्त शक्तिशाली का सम्मान होता है!
रीड की हड्डी मैं बचपन से ही शिकायत थी,
गुंगे तो है ही, बस बहरा होना बाकी है.  

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