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Sunday, February 1, 2015

रंग-बिरंगी धारियां

हाईड-पार्क के पांच मंज़िले घर में, कमरे होंगे दस और लोग महज़ पांच। हम स्टडी में बैठ के शतरंज खेल रहे थे, और पियानो पे अडेल बीथोवन कि कोई धुन बजा रही थी। घर का फर्नीचर पुराने और नए का मेल है। फायर-प्लेस के ठीक ऊपर पुराने ढंग का बड़ा सा आईना, जिसके चारो तरफ सुंदर लकड़ी का काम अब गलने लगा है। नए डिज़ाइन का गोल हरा और संतरी, ठीक टेबुल के ऊपर टंगा झूमर। एक बड़ सा मजबूत दिखने वाला स्टडी टेबुल, और उसकी अलग अलग रंग और साइज कि कुर्सियां (जो शायद तीनो बच्चो कि पसंद और जरुरत के हिसाब से मंगाई गई थी।) टेबुल पे रखी हैं दर्जनों रंग बिरंगी पेन और पेंसिलें, तरह तरह के शार्पनर और रब्बर, फूलो वाली छोटी बड़ी कापियां, जिनकी तरफ रह रह के मेरा ध्यान खिच जाता है। मैं बीच बीच में अलग अलग पेन उन कापीयों पे चला के देखती हूँ, और अपनी लोहे कि जिमेट्री जिसमें एक लाल काली धारी कि पेन्सिल, आधा सफ़ेद रब्बर और एक कन्नी से टुटा शार्पनर होता था, याद करती हूँ। मैं ये सारी चीजें अपने बैग में भर लेना चाहती हूँ.…

स्टीवन सब के लिए 'टी' ले आया है, बड़ी सी ट्रे में सुंदर नीले रंग कि केतली, सफ़ेद कटोरी में भूरे रंग के शुगर क्यूब्स और छोटे बड़े चीनी के कप। मैं स्टील कि बेली में गुड़ कि चाय याद करते हुए अपने कप में बिना दूध कि 'टी' उड़ेलती हूँ तो मेरे हाथ बिना कारण कांप जाते हैं, स्टीवन मुझसे पूछता है कहीं मुझे ठण्ड तो नहीं लग रही। लेकिन ये बड़ा सा घर इतना गरम है के मुझे अंदाजा भी नहीं होता के बाहर बर्फ गिर रही होगी।

क्लास खत्म होने वाली होती है तो अडेल मुझ से बात करने निचे आ जाती है। बच्चे फुटबॉल का कोई मैच देखने के लिए बेताब हैं और फटाफट चैस कि आखरी पहेली सुलझा लेना चाहते हैं। यहाँ फुटबॉल तो जैसे खून में हैं, बच्चे-बूढ़े सब ऐसे अपनी अपनी पसंदीदा टीमों के बारे में बात करते हैं के मत पूछो। कोन खिलाड़ी कब और कितने में खरीदा, कोन बिका, कोन नया कोच आया से लेके टिकट कितनी महँगी सस्ती हुई सब कि ना सिर्फ खबर रखते हैं, ओपिनियन भी रखते हैं। और अपनी टीम कि जर्सियां पहन के ऐसे इठलाते घूमते हैं के क्या कहने, फिर जीतने हारने पर खूब जब के बहस करते हैं। मैं तो जो जिसकी जर्सी पहना होता है उसी कि साइड हो जाती हूँ, फ़ालतू में क्यूँ किसी का दिल दुखाया जाये। इस घर के बच्चो का फेवरेट चेल्सी है और स्टीवन का वेस्ट-हैम, तो मैं मैच शुरू होने से पहले ही खिसक लेती हूँ।

स्टडी के सामने खुली रसोई है, और मुझे तेज़ पास्ता और चीज़ कि महक आ रही है, मुझे भूख भी लगी है। अडेल को जैसे सब मालूम होता है, वो मुझे खाने पे रुक जाने को कहती है, लेकिन मुझे अभी दूर जाना है और रास्ते में कल के लिए दूध और सब्जियां भी लेनी हैं। वो मुझे दरवाज़े पर छोड़ने आती है, मैं दस्ताने लाना भूल गयी हूँ और अपने हाथ मफ़लर में छिपा लेती हूँ। अडेल मुझे दो मिनट रुकने को कहती है, और भाग के अंदर से दो अलग-अलग दस्ताने ले आती है, और जबरदस्ती मुझे थमा देती है। मैं उसे चूम लेना चाहती हूँ........उससे तो मुझे आजकल अपनी पंसदीदा चीज बोलने में भी झिझक होती है, मैंने उससे एक दिन कहा के ये 'टी' बहुत अच्छी है तो उसने चुपके से मेरे बैग में उसका डब्बा डाल दिया। कैसे इतने प्यार करने वाले लोग मिल जाते हैं मुझे? मुझे अपनी किस्मत पे भी रश्क़ होता है कभी कभी।

खैर मैं जल्दी से विदा लेती हूँ और तेज़ी से ट्रैन स्टॉप कि तरफ कदम बढाती हूँ, अभी तो घर पहुँचने में देर है, रात घिर आई है और ये बर्फ..... ट्रैन स्टॉप ज्यादा दूर नहीं है, लेकिन सर्दी में अँधेरा जल्दी होने लगता है और आज तो बर्फ भी गिर पड़ी है। रास्ते में आयरलैंड एम्बेसी कि बड़ी सी ईमारत है, बिल्डिंग बंद होने के बावज़ूद भी  अंदर लाइटे जल रही हैं और बड़ी बड़ी खिड़कियों से अंदर का नजारा दिख रहा है। ये बड़े बड़े झूमर और लाइन में लगा फर्नीचर, अंदर एकदम गरम मालूम पड़ता है, क्या पता शायद हीटर भी चलता ही छोड़ दिया गया है। एम्बेसी के दरवाज़े के सामने एक अधेड़ उम्र का आदमी गत्ते जचा रहा है, आज रात यहीं ठिकाना मालूम पड़ता है। क्या पता अंदर कि गर्मी दरवाजे के नीचे से चुपके से इसकी चादर में सरक आये। क्या इसे भी अपनी किस्मत पे रश्क़ होता होगा? क्या इसकी भी कोई अडेल होगी कहीं………

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