दुपट्टा निरादर है नारीत्व का, दुपट्टा तौहीन है कुदरत कि, दुपट्टा अपमान है इंसान के विकास का , दुपट्टा तौहीन है तुम्हारी संस्कृति कि! ज्यों ही लड़की रखती है कदम जवानी में, ज्यों ही होती विकसित नारी रूप में, उढ़ा दिया जाता उसे "दुपट्टा"। "ढक लो!", "छुपा लो!" भाई से छुपा लो, बाप से छुपा लो, ताऊ से छुपा लो, चाचा से छुपा लो, दोस्त से छुपा लो, पड़ोसी से छुपा लो! हर तरफ से शुरू हो जाती है कोशिश उसे छुपाने कि। मार डालने तक कि धमकियाँ दी जाती हैं, मजाल के लड़की करे गर्व अपने लड़की होने पर। तुम शरमाओ, तुम छुपाओ, नहीं तो तुम्हे "बदचलन", "बेहया", और ना जाने क्या क्या उपाधियाँ दी जाती हैं। डरा धमका के ढक दिया जाता है लड़की के विकास को।
क्या रहस्य है? डर लगता है लड़की के जवान होने से, या शर्म आती है? क्या छुपा ले? अपने नारी होने को? अपने विकास को? अपनी जवानी को? कलंक है जो छुपा ले? पाप करती है जो जवान होती है?
दूसरी तरफ लड़का बस इस कोशिश में रहता है, के किसी तरह दाढ़ी-मुछ आ जाये, कच्ची-चिकनी खाल पे चलाता रहता है ब्लेड, बस कैसे जल्दी से जल्दी जवान हो जाए। जवान होते ही पनियाता फिरता है अपनी मुछो को, ताव देता फिरता है अपनी जवानी कि निशानी पे! होता है गुमान माँ को, बाप को, ताऊ को, चाचा को, पुरे समाज को उसकी जवानी पे! पूरा दिखावा होता है लड़के कि जवानी का, गर्व करता है, इठलाता फिरता है। वहीँ दूसरी तरफ शर्म में गाड़ दिया जाता है लड़की कि जवानी को। तैयार किया जाता है उसे पुरुष प्रधान समाज के लिए। "पर्दे" कि और पहला कदम है दुपट्टा। ये नीव है गुलामी कि।
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