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Sunday, February 1, 2015

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प्रियंका कि बात रह रह कर परेशान कर रही थी, "जीजी कुछ ना कुछ तो लड़कियों में भी कमी होगी, जो ऐसे लड़को को बर्दाश्त करती हैं।" सही बात है ब्रेकअप क्यूँ नहीं करती, अगर लड़का वॉयलेंट है या पसंद का नहीं है। मैं सोचती रही....... क्यूँ नहीं करती, क्यूँ पढ़ी लिखी समझदार होते हुए भी सहती जाती हैं?
लड़कियों का जरुरत से ज्यादा भावुक होना एक तरफ.…पर क्या भावुक होना इतनी बड़ी कमजोरी है, या कुछ और?
कल मैंने मरिसा से उसके ब्रेकअपस के बारे में पूछा, उसने कुछ यूँ मेरी आँख खोली, "मेरा जब भी ब्रेकअप हुआ तो जी खोल के रोई, माँ के पेट में सर छुपा के, पापा को सब बताया। रोड पे खड़े होके चीखी-चिल्लाई और आते-जाते लोगो तक से सहानुभूति ले ली। दोस्तों के साथ रात भर वाइन उड़ेली। घरवालों, दोस्तों, पड़ोसियों यहाँ तक के अजनबियों से सहारा मिला। कभी आसान नहीं था, कभी आसान हो ही नहीं सकता। लेकिन ये जरूर पता था के जितना दुःख ब्रेकअप में है, उससे कई गुना ज्यादा साथ में होता और होता रहता।"
लेकिन हमारे यहाँ तो दस में से आठ लड़कियां तो अफ़ेयर ही छुपाना पड़ता है, ब्रेकअप कैसे बतायें? और ख़ुशी तो छुप के अकेले में पलक झपकते बीत जाती हैं, गम अकेले नहीं बीतता। फिर हम अपने आप से लड़ते हैं, और अकेलेपन में ज्यादातर उसी आदमी के सहारे कि जरुरत महसूस करते हैं, जिससे भाग रहे होते हैं। और फिर और गहरे फंस जाते हैं, अपने ही बनाये चक्र्व्यू में। और वो डरावना "अकेलापन" जो दौड़ता है काट खाने को। और जो रह रह के सांस रोकता है, उसका क्या?
कितना आसान है हमारे देश में, अगर लड़की घर से दूर दूसरे शहर में काम करती है, अकेलेपन को हराना? जब रात को अकेले में रह रह रूकती हैं सांस, जब पुरानी यादे धीरे धीरे घोटती हैं गला। तब कितना मन करता है दौड़ जाएँ सड़क पर अकेले, और भर ले फेफड़ो में खूब सारी ठंडी ठंडी हवा। स्टार्ट करें बाइक और ले चले शिमला! जब तक चलाते रहे तब तक हाथ सुन्न ना हो जाएँ। ज्यादा नहीं तो इंडिया गेट तक तो चले ही जाएँ। लेकिन ये क्या, ये तो दिन छिप गया। अकेले जाऊं? या किसी को बुला लूँ? कपड़े भी तो बदलने पड़ेंगे, फिर वापस आते आते देर हो गयी तो। फिर बाहर जाना, ठंडी हवा कम हिसाब-किताब ज्यादा लगता है।
और दुनिया भर के जुज़ॅमेंट्स का क्या? इसको पता चल गया तो, उसने उसको बता दिया तो, वो क्या बोलेगे, ये क्या सोचेगा, पता नहीं किस-किस को बताएगा, मम्मी-पापा तक बात पहुँच गयी तो, ताऊ जी का लड़का भी तो वहीँ काम करता है, उसकी माँ मेरी बुआ कि सहेली है। वो फोटो का क्या? होने-वालों को भेज दी तो? और जाने कितनी ही बेफाल्तू कि इमेजिनरी चिंताएँ। और सॉलिड जजमेंट्स, "वो तो बड़ी फ़ास्ट है।" "ऐसी लड़कियों के साथ ऐसा ही होता है।" "ऐसी लड़कियाँ घर थोड़े ही बसाती हैं।" "निभाना थोड़े ही आता है इन्हें, थोड़ा बहुत तो कम्प्रोमाईज़ करना पड़ता है।" "ज्यादा फेमिनिस्ट बनोगी तो अकेली ही रहोगी।"
मन तो करता है "*#@$%^&*@!><@#$@"
काश हम भी रो पाते, यूँ खुल कह पाते अपने ब्रेकअप कि कहानी। जमा करते ब्रेकअप वीडियोस एक ही बक्से में, और हँसते रोते अपने-परायों के साथ। सोच रही हूँ भारत आके ब्रेकअप रीहैब खोल लूँ। ब्रेकअप मंत्र "दुनिया भर को दुःख बांटा, और जज करने वालों को बोला टाटा।"

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