वो कहता है तू बदल अपने आपको,
मैं कहती हूँ अभी पहचान ही कहाँ है खुदसे
साहस ख़ुद को बदलने मैं नही, साहस ख़ुद सा रहने मैं है,
साहस दौड़ने मैं नही, साहस चलने मैं है
जींदगी छोटी दौड़ नही,
जींदगी लम्बी यात्रा है
यात्रा पाने की नही,
यात्रा जानने की,
यात्रा है जीने की,
जींदगी इक चित्रपट की तरह चलती रही,
मैं एक कलाकार.....
ढूंड रही थी कुछ, एक सार जिंदगी का,
तलाश थी मुझे कीसी की,
कलाकारों की इस भीड़ मैं ,
तलाश थी मुझे उस चित्रकार की,
गूम होकर भी इस भीड़ मैं, कुछ अलग सी थी मैं,
सच और झूठ, गलत और सही की
इस प्रशनावली मैं उलझ कर भी
कुछ सुलझ सी रही थी मैं
कुछ नाता था मेरा उस अनजान से,
कुछ नाता था मेरा उस गुमनाम से.....
3 comments:
Hmmm...Nice thought !! Beautiful :)
write more...you are superb !!
thanks buddy.
nice poem.hats off to your creativity.keep writing and inspiring people like us!!!!!!!!!!!!!!!!!!!
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