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Tuesday, August 26, 2008

बौना प्रस्ताव


क्या आँख भर आती है अभी भी जब,
दास्ताँ वो अपनी बयां करती है.
क्या सर्द पद जाता है खून तुम्हारा जब,
बेबसता तुम्हारी उसमे झलकती है.

क्या अभी भी रेंगती हैं बदन पे चींटियाँ जब,
देखते हो इंसानियत को तोड़ते दम.
क्या आता है उतर खून आँखों मैं जब,
न्याय होता है नीलाम उसकी बेबसी के संग.

क्या मर गई है अब आत्मा तुम्हारी,
क्या खून का रंग अब लाल नहीं?
क्या खरीद लिया है तुमने भी कवच लोहे का?
क्या ठंडे पड़ गए हैं वो भड़कते शोले?
क्या सौदा हो गया है तुम्हारा भी अब?

लाल इंटों मैं चिन दिया तुमने दीवानगी को अपनी,
क्या बिक गया पागलपन तुम्हारा उस भयानक सुरक्षा के बदले?
क्या हीसाब करना भी भूल गए हो अब?
शोलों के बदले ईंटें ,
दीवानगी के बदले चुप्पी,
खून के बदले कागज़,
उस किलकारी के बदले यें खोखली हंसी,

क्या स्वीकार कर लीया है तुमने भी यें बौना प्रस्ताव?

1 comment:

Sumeet's said...

bohot khub...kaafi gehri baat kahi.. sachhaai ismein jhalak rahi...jisne samjha ise usne jamaaye is dhara par paaw hai...jo na samja isko usne chun rakhha "bona prastaaw" hai..