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Friday, August 22, 2008

चहरे


जिन्दगी के सफर मैं कुछ कर गुजरना है,
या कहें कुछ कर गुजरने मैं है जिन्दगी।
मैं एक खुश जिन्दगी के लिए लड़ती रही,
या कहें लड़ने मैं है खुशी।
मैं कभी न पायी ख़ुद को जान,
या कहें जानने मैं गुजर गई जिन्दगी।
मैं कभी हाँ तो कभी ना थी।

क्या मैं अलग थी या थी पगली,
यूं ही ना जी सकी मैं जिन्दगी।
मैं एक दिन ख़ुद को जान ही लूंगी,
अपने अस्तित्व को पहचान ही लूंगी।
यूँ ही तो ना जी सकूंगी मैं, अपने आप को मार कर,
आख़िर चाहती क्या है मुझसे यें जिन्दगी?

क्यूँ नही यें आग बुझती कभी,
या जला ही दे मुझे यें अभी।
क्यूँ झुलस रही हूँ मझदार मैं,
रास्ता क्यूँ नही दिखाती यें जिन्दगी?

कभी उसे अपना तो कभी पराया बना दिया,
उसे भी अपने खेल का हिंसा बना लिया।
ऐ जिन्दगी यें कैसी पिरक्षा है,
हार ना जीत ये कैसी लड़ाई है?
यें जिंदगी आख़िर किसने बनाई है?

क्यूँ वो हर बार जीत कर भी हार जाता है?
अपना हो कर भी क्यूँ वो पराया कहलाता है?
सब ठीक होकर भी ग़लत सा क्यूँ लगता है?
गहरे जा कर भी क्यूँ वो उथला सा रहता है?
बात हृदय से निकल कर क्यूँ हलक मैं रह जाती है?
कौन है यें जो हर हालत पर प्रशन उठाती है?

जिन्दगी यूँ आसन यो नही, चहरों के ऊपर चहरे हैं कई।
एक चहरा मैंने भी ख़रीदा है "सही सा"!
इतना बुरा तो नही यें, हालांकि यें मैं नही,
पर चहरा है सही!
सही चहरों की भीड़ मैं चहरा मेरा भी सही सा!
सहनशील, क्षमावान, बलिदानी! हाँ!
आक्रोश को दबा लिया मैंने कहीं,
आग को भुझा दिया मैंने कहीं,
ठीक ही तो है क्या ग़लत किया मैंने?
अपने को सबसा बना लिया मैंने।

पर एक चहरा तो ज्यादा दिन ना चल पायेगा,
यें समाज फिर कोई प्रशन उठाएगा।
सोचती हूँ चहरों की एक दूकान खरीद लूँ,
सबके लीये एक नकाब खरीद लूँ।
पर नकली चहरों की इस भीड़ मैं मेरा चहरा खो ना जाए कहीं.....

6 comments:

Deno said...

very well written.gud use of words in expressing urself!!!!!!!!!!keep the fire burning.my wishes!!!!!!!!!!!

Anuradha said...

thanks deno! your praises will keep the fire alive :-)

waiting to see your writing in your blog. when?

Prashant said...

कही दिनो बाद आपकी ये कविता पढ़कर एहसास हुआ वो अनगिनत है मेरे लिए कुछ तो है हिन्दी मे जो इतने सालो से इसे छोड़कर इंग्लीश पढ़ने के बाद भी जो इसमे संतुष्टि मिली

Prashant said...

कही दिनो बाद आपकी ये कविता पढ़कर एहसास हुआ वो अनगिनत है मेरे लिए कुछ तो है हिन्दी मे जो इतने सालो से इसे छोड़कर इंग्लीश पढ़ने के बाद भी जो इसमे संतुष्टि मिली

Http://meraapnasapna.blogspot.com said...

Hello mam/di
मुझे आज सुबह आपके ब्लॉग का लिंक मिला...मैंने शाम होते-होते सारी पोस्ट्स पढ़ ली हैं....मेरे पास आपकी लेखनी के लिए लफ्ज़ नहीं हैं...मैं कल अपनी फेसबुक id पर भी आपके ब्लॉग का जिक्र करुँगी मैंने वहां आपको रिक्वेस्ट भी भेज दी हैं हो सके तो स्वीकार कर लीजियेगा....और हाँ वक़्त मिलें तो जरा इधर भी रुख कीजियेगा...
Http://meraapnasapna.blogspot.com
शुक्रिया....आभार😊

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