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Friday, August 22, 2008

अधूरी है......

कौन हूँ मैं, उसे क्या है पड़ी,
जींदगी मेरी है, हर पल मैं अकेले ही आगे बढ़ी।
क्यूँ वो हर पल मुझसे खफा रहता है,
तू क्यूँ नही बदल जाती, हर दफा मुझसे कहता है।
बदल कर मुझे वो क्या पायेगा, खो जाउंगी जब मैं,
किसे वो अपना बनाएगा?

ख़ुद को जानने की इस यात्रा मैं,
लोग मुझे पहचाने की कोशीश करने लगे,
हजारों नाम दिए मुझे लोगो ने,
चरित्र मेरा वो मुझे बताने लगे!
अभी तो ख़ुद से पहचान भी नही हुई थी,
के लोग अपना निर्णय सुनाने लगे!

अब तो डर लगता है ख़ुद से भी कभी कभी,
कहीं ख़ुद को जानने की कोशिश मैं खो तो नही दिया कहीं?
गुम हो गई हूँ भीड़ मैं या भीड़ मेरी पहचान है.......

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