ऐसे ही रात-दिन, बेटेम, बेमतलब घूमूंगी
ऐसे ही गंदे गंदे कपड़े पहन के, अधनंगे
हँसूंगी, जोर जोर से, बेशर्मी से खिलखलाऊँगी
और जाउंगी साथ और अकेले, जो करेगा मन
जैसा करेगा मन।
समंध बनाऊँगी, जायज़, नाजायज़
जिससे चाहूंगी।
तेरी रिच संस्कृति का ढोल बजाउँगी।
लज़्ज़ा की फिरकी बना के घुमाऊँगी
फ़िरूँगी चरित्रहीन।
समाज को तूने नाम दिया, तेरा होगा। थू।
शहर को तूने बनाया, तेरा होगा। थू।
देश भी तू रख। थू।
कानून भी रख। थू।
रख तू अपने पास!! रख।
ये धरती समूची मेरी है।
ये आसमान समूचा मेरा है।
मैं चलूंगी। मैं उड़ूँगी। मैं फ़िरूँगी।
चरखी बन के। मदमस्त।
देख तो। देख। पास तो आ।
आ। आ। आ।
जहरीला फूल हूँ, सूंघ भी नहीं पाओगे,
एटम बम हूँ, हाथ भी ना लगा पाओगे
हो जाएंगी छित्तर-बित्तर तेरी आँतड़ियां
तेरी आँख, तेरी जीभ, तेरी उँगलियाँ
धरती की धुल में।
3 comments:
अब एटम बम बन कर ही जीने का संकल्प लें तो एक मिसाल बने। कठपुतली बन बहुत जी लिया और फिर भी लांछन से बची क्या ?
Bohat Khoob Kavita..Aaj k samaj k liye perfect fit hai.
आवाज उठ रही है और जोर से और शोर से उठेगी
आगाज हो चूका है अंजाम तक पहुचेंगे
अब ना रूकेगी मेरी बहन,मेरी पत्नी, मेरी मां,
मेरी चाची, ताई, बुआ पड़ोस रहने वाली मेरी दोस्त
मेरी गर्लफ्रेंड
सब उठेंगी, उखाड़ फैंकेंगी ये महान सभ्याता
और सदियों के सितम को,
बेशर्म कहों, आवारा कहो कहते रहों
अब तुम लाएंगी मेरी बहन मेरे साथ बाजार से ब्रा
तुम मत देना अब मै अपने बच्चों को सेक्स की दूंगा तालीम,
मेरी पत्नी, बहन, मां सब करेंगी तुम्हारी महान सभ्याता का विनाश
होगी एक आवारा, बेशर्म दौर की शुरूआत
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