नदी जो बहे, ना एक-सी रहे,
रस्ते के साथ बहाव का बदलना,
आहिस्ता कभी तेज़, ना रुकना ना ठहरना..
है आज़ाद उसका बहना.
पक्षी जो उड़े, गाये गीत,
इस डाल कभी उस डाल,
ना गीत किसी तारीफ़ का मौहताज,
है आज़ाद उसका चहकना.
फूल जो खिले, रंग-रूप हज़ार,
बगिया हो या बाज़ार, बेख़बर!
सहर के साथ खिलना, बेवजह!
है आज़ाद उसका महकना.
बादल जो गरजे, ले बिजली की तलवार,
अहंकार से गरजे करे ललकार,
तूफान, कभी हल्की बौछार,
है आज़ाद उसका बरसना.
उठा के सर देख!
चीख, चिल्ला! के बहरे हो जाए ये गुंगे लोग,
नाच बेढंग, गा बेसुरा.. तू हंस, हो पागल! के मुस्कुराये ये "सभ्य" लोग.
हो आज़ाद तू भी, के आज आज़ादी दिवस है!
-अनु
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".....उठा के सर देख!
चीख, चिल्ला! के बहरे हो जाए ये गुंगे लोग,
नाच बेढंग, गा बेसुरा.. तू हंस, हो पागल! के मुस्कुराये ये "सभ्य" लोग.
हो आज़ाद तू भी, के आज आज़ादी दिवस है!...."
Waah!
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