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Sunday, December 19, 2010

मेरी सहेली





है  कुछ  जानी-पहचानी सी  सहेली  यें, 
अपनी  सी  लगती  जब  अकेली  यें
इसके  दर्दों  की  दास्ताँ भी, 
कुछ अपने  सीने  मैं  हूकों  जैसी 
इसके  साहस की  कहानिया भी, 
कुछ  अपनी  करतूतों जैसी
है  मेरी  सहेली  ये  जो,
आइएने मैं  अपनी  सी  लगती  है 
है  कौन  ये जब  दहकती  है
तो  चिंगारी  सी  सुलगती  है.
है  कौन  यें?  तू, मैं,  या  वो. क्या  पता!
आग  तो  आग  है,  सब  एक-सी जलती हैं. 

2 comments:

Ashu said...

hair raising composition.... extremely good... :)

A Quiet Renaissance said...

nice to see the dreams are taking off!