है कुछ जानी-पहचानी सी सहेली यें,
अपनी सी लगती जब अकेली यें
इसके दर्दों की दास्ताँ भी,
कुछ अपने सीने मैं हूकों जैसी
इसके साहस की कहानिया भी,
कुछ अपनी करतूतों जैसी
है मेरी सहेली ये जो,
आइएने मैं अपनी सी लगती है
है कौन ये जब दहकती है
तो चिंगारी सी सुलगती है.
है कौन यें? तू, मैं, या वो. क्या पता!
आग तो आग है, सब एक-सी जलती हैं.
2 comments:
hair raising composition.... extremely good... :)
nice to see the dreams are taking off!
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